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आज के वर्तमान समय में कोई भी इन्सान ऐसा नहीं जिसका ‘ इससे ‘ सामना न हुआ हो | सभी अलग अलग तरह से इसके घेरे में आकर फंस जाते हैं किसी का ये घेरा छोटा होता है तो किसी का बड़ा या फिर किसी का इतना अधिक बड़ा कि उस घेरे से निकलना संभव ही न हो ! https://www.jagran.com/blogs/alkargupta1/2011/01/07/ इस लिंक पर ‘ चिंता ‘ से जुडी एक पोस्ट भेजी थी| कोई भी चिंता अगर दुश्चिंता का रूप ले लेती है तो वह हमारे शरीर के लिए घातक सिद्ध होती है ! यही बताने का प्रयास किया था | इस चिंता के बारे में अर्वाचीन मनोविज्ञान का क्या दृष्टिकोण है इस पर भी थोड़ा विचार करते हैं | इस सम्बन्ध में कुछ तथ्य एकत्रित करके संक्षिप्त रूप में (सम्बंधित विषय पर काफी विस्तृत विश्लेष्णात्मक सामग्री होने के कारण ) इस विषय को पुनः आप सबके समक्ष रखने का दुस्साहस किया है तत्पश्चात निर्णय हमारे हाथ में है कि हम इसके कौन से पक्ष को अपनाते हैं सकारात्मक या नकारात्मक ! इसके साथ ही आप सभी के बहुमूल्य विचार भी अपेक्षित हैं !
इस मनोविज्ञान में चिंता बोधात्मक ,शारीरिक , भावनात्मक और व्यावहारिक विशेषता वाले घटकों की
मनोवैज्ञानिक दशा है | ये घटक एक अप्रिय भाव बनाने के लिए जुड़ते हैं जो कि आमतौर पर बेचैनी , आशंका , और क्लेश से
सम्बंधित हैं | यह एक सामान्यकृत मनोदशा है जो कि प्रायः न पहचाने जाने योग्य कारण द्वारा उत्पन्न हो सकती है………या फिर अनुभव किये गए अपरिहार्य खतरों का परिणाम है………… | एक अन्य दृष्टिकोण यह भी है कि चिंता एक भविष्य उन्मुख मनोदशा है जिसमें एक व्यक्ति आगामी नकारात्मक घटनाओं का सामना करने का प्रयास करने के लिए तैयार रहता है……… | चिंता को तनाव की एक सामान्य प्रतिक्रिया भी माना जाता है जो व्यक्ति को मुश्किल स्थिति से निपटने में मदद कर सकती है………… और अधिक चिंता करने पर व्यक्ति दुश्चिंता का शिकार भी हो सकता है जो उसके जीवन के लिए घातक होगा…………!!
अतः निष्कर्ष रूप में मनोविज्ञान का मत है कि “आज सकारात्मक मनोविज्ञान में चिंता को एक ऐसी मुश्किल चुनौती के लिए जवाबी कार्रवाई ( उपाय ) के रूप मे वर्णित किया गया है जिसका सामना करने के लिए व्यक्ति अपर्याप्त कौशल रखता है………..!” इससे यही लगता है कि यदि हम किसी भी मुश्किल चुनौती का सामना करने के लिए पूर्णरूपेण कुशल नहीं हैं तभी हमारे मस्तिष्क की कोई न कोई जवाबी कार्रवाई शुरू हो जाती है……..! तो फिर आइये मनोविज्ञान के अनुसार किसी भी मुश्किल चुनौती का सामना करने के लिए अपने अपर्याप्त कौशल को पर्याप्तता की श्रेणी में लाने का भरसक प्रयत्न करें……………..! सफलता तो मिल ही जायेगी……. और अगर पूर्ण सफलता नहीं भी मिली…….तो उसके करीब तो पहुँच ही जायेंगे……… !
डॉक्टर नीलम कुमार वोहरा ( मनोवैज्ञानिक ) ने इस मनोविकार को दूर करने के लिए कुछ उपयोगी सुझाव दिए हैं जिन्हें मैं यहाँ लिख रही हूँ इन पर अमल करके सम्बंधित व्यक्ति को कुछ राहत तो mil ही सकती है……………
१– अपनी दुश्चिंता या व्यग्रता को दूर करने के लिए सम्बंधित व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ावा देना है जिससे उसके नैतिक बल को प्रोत्साहन मिले……..
२– अल्कोहल के सेवन से बचना चाहिए……
३– ऐसे व्यक्ति को बिलकुल अकेले नहीं छोड़ना चाहिए | इनके साथ बात-चीत से समस्या का समाधान निकालना चाहिए……
४– दुश्चिंता के शिकार व्यक्ति को किसी न किसी कार्य में व्यस्त रखना चाहिए…………
५– ऐसे व्यक्ति को एकांगी या आत्मकेंद्रित होने से बचाना चाहिए उससे हर समय बात-चीत करें…….
६– उसके सोचने के तरीके को बदलने का प्रयास करना चाहिए…..
७– परिवार वालों को समझदारी से काम लेना चाहिए उन्हें उससे ऐसी कोई भी उम्मीद नहीं लगानी चाहिए जिसे वह व्यक्ति पूरा न कर पाए | अगर सम्बन्ध मज़बूत हैं तो ऐसी समस्याएँ खड़ी ही नहीं होंगी ………
८– सामाजिक कारण भी इस दुश्चिंता का कारण बनता है चूंकि अब लोगों के पास परिवार के लिए समय ही नहीं है ,पारिवारिक समस्याएं सुलझाने में कठिनाई महसूस होती है………….
इस मनोविकार से सम्बंधित व्यक्ति और उसका परिवार डॉक्टर द्वारा दिए गए इन सुझावों को मानकर यदि चले तो निश्चित ही
उसका जीवन सुन्दर व स्वस्थ हो जाएगा…….. !
कैसी भी मुश्किल चुनौती क्यों न हो सामना करने के लिए खड़े रहना है……..आगामी समय में मंच पर प्रतियोगिताएं भी होने वाली हैं………..सर्वोत्तम कोटि का शुभ लेखन…….. ,शुभ चिंतन…… , शुभ प्रयास………. ,शुभ चेष्टाएँ जारी रखें……… फिर तो सब कुछ ………………!!!!! छोड़ती हूँ अब……. आप सब के बहुमूल्य विचारों के लिए………….!!!!!!
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