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“प्यार की डोर– Valentine contest”

sahity kriti
sahity kriti
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जागरण मंच पर हो रही सज्जा दिन दूनी रात चौगुनी
कहीं है प्रेम उत्सव की छाया सुहावनी
तो कहीं प्रेम वर्षा की रिमझिम फुहारें सावनी
कभी गीतों ,ग़ज़लों औ कविताओं से होती सज्जा
तो कभी उच्च कोटि के आलेखों से सजते द्वार !
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रोम-रोम सभी के बस गयी सुगंध प्यार की
मस्त हो उठी बहारें भी फागुनी बयार की
प्रेम शैवलिनी में उफन रहे सपने भी
स्नेह डोर में बंधते जा रहे सभी
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बस रोशनी हो इंसानियत की न टूटे कोई दर्पण
या फिर ना हो आकृति भी कोई विकृत !
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गिरते हुए को दें सभी प्यार का अवलंबन
न भरें अश्रु से किसी का दामन
जो कभी हंस न सके हों तो लो
शपथ भी हंसाने की स्नेह से उनको !
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आओ बांधें सभी को प्यार की डोर से
बांधें और बंधें ऐसे कि न खुले फिर से
लगे ऐसा कि हर दिन ही हो जाए……
वैलेंटाइन डे……हर दिन वैलेंटाइन डे !
आप सभी को मेरी ओर से ` Valentine Day’ की हार्दिक शुभकामनाएं !

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