sahity kriti
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रोम-रोम बिखर गयी सुगंध प्यार की
चल उठीं बयारें भी अब फागुन की !
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अधरों पे स्वर नयनों से मृदु नीर
गीतों में लहरा उठी विरहा पीर |
बज उठी शहनाई अब श्वास की
चल उठी बयारें भी अब फागुन की |
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गाँव-गाँव जगह-जगह नाच उठी ‘राधा’
तो कहीं नारी ने जोगन-सा वेश साधा |
बातें करते सब रूप के सिंगार की
चल उठी बयारें भी अब फागुन की |
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गलिन-गलिन बज उठे ढोल ताशे औ मजीरे
आओ हम रंग जाते फागुन के गुलाल में |
देहावृत श्वेताम्बर भी लगते रंगीन मनोहारी
चल उठी बयारें भी अब फागुन की |
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रोम-रोम बिखर गयी सुगंध प्यार की
चल उठी बयारें भी अब फाल्गुन की |
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आप सबको इस रंगीन पर्व पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं !!
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