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धन्य हुई जन्म लेकर अंक में भारत की
लिपटी तन पर सौंधी गंध इसकी माटी की |
सुगंध लेने को यहाँ की तरसते परदेसी भारती
जहाँ बहती हों गंगा , यमुना औ सरस्वती |
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नीलाभ परिधान से आवृत है
रवि मस्तक पर विराजित है|
हिमालय ताज-सा शुभ्र मुकुट
तारा मंडन पुष्पों से सुवासित है |
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शशि की सुधा सम शीतलता
सागर भी जिसके चरण पखारता |
जलधि अन्तः उर पर करती नृत्य लहरें
मनहूँ धरणी प्रांगण में थिरकतीं बालाएं |
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खग वृन्द बनें चारण जहाँ पर
लघु वारिद खंड करते अभिषेक |
मृदु नीर भी अमृत सम उत्तम
शीत मंद पवन भी हुई उन्मत्त |
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भारत की पावन माटी में जन्म लिया
भगत सिंह, राजगुरु, सुभाष औ देश के वीर व्रतधारी |
न जाने कहाँ हो गए लुप्त माँ के ये सपूत
कहीं खो गई संस्कृति , सभ्यता हमारी पुरानी ?
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क्या अंतस में याद आयेगी कभी इनकी ?
बहाईं थी जिन्होंने रक्त की नदियाँ |
होकर रक्त-रंजित दे रहे सन्देश सभी यही
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपिगरीयसी !!!
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गूँज उठे सप्त स्वर अंतर में
आओ, करें नमन देश के वीर सपूतों को !
नमन पावन धरणी को …..नमन वीर सपूतों को
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