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ज़िन्दगी एक झरना

sahity kriti
sahity kriti
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हिमगिरि के ऊंचे शिखरों पर
झर-झर करता एक झरना
आते हैं अनेक उतार चढाव इसमें
ज़िंदगी तो है एक झरना !
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पानी का हुआ टकराव पत्थर से
पत्थर ने कहा चट्टान से——
“ करो कितने भी वार वारि से
होना नहीं मुझे विचलित पथ से |
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आयेंगे पथ पर रोड़े अनेक
लगाओ कोड़े कितने ही मेरे
करो धुंआधार वर्षा ऊपर मेरे
रहना स्थिर यहीं पर मुझे | ”
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सुन वारि भी बोला कुछ ऐसा…….
हूँ मैं तो सर्वस्व तरंगिनी का अपना
मेरे कलरव पर देते हैं ताल तरुवर |
हरित मखमल पर पड़े तरु पखेरू
करके पान मेरा करते हैं नृत्य न्यारा |
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पत्थरों से करता लड़ाई
झरने ने ली अंगड़ाई
जीवन के मोड़ पर हुआ है ठहराव
होगी छवि न धूमिल धूम-सी |
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रात्रि के नीरव आकाश मंडल में ऐसी
श्वेत धवल चांदनी-सी तारावली……..!
उस पर कलरव करता निनाद
मिलता है सभी को प्रसाद |
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पत्ते ये विजन से देते हैं मंद शीतल बयार
तब होता है मन मेरा हर्षोल्लसित बार-बार !
जीवन तो एक झरना है यह एक झरना है !

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