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सामाजिक मान-प्रतिष्ठा व श्रद्धा का आधार स्तम्भ…..वाणी

sahity kriti
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अपनी भाषा,हमारा आचरण ,और व्यवहार से ही लोगों के प्रति साधारणतः धारणाएं बन जाती हैं कि अमुक व्यक्ति की पारिवारिक व सामाजिक पृष्ठभूमि कैसी है ? यहाँ तक कि उसकी प्रवृत्ति व जीवन शैली के विषय में भी ! हमारी वेश भूषा , बाह्य रूप सज्जा और बहुमूल्य आभूषणों से आवृत्त सुन्दर सी काया क्षण भर के लिए ही आकर्षण मात्र होती है | इन सबसे ऊपर हमारे जीवन में इस बात का सबसे अधिक महत्त्व है कि हम अपने सामने वाले से कैसी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं……..कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे शब्द तीरों से वह मर्माहत हो गया हो ……!
हमारी पड़ोसी एक महिला की कर्कश वाणी व भीषण मुख मुद्रा ने मुझे इस विषय पर कुछ लिखने को विवश कर दिया…..! तो सोचा इन्हीं साक्षात दृष्टा महिला से ही अपना विषय कुछ आगे बढाया जाए…..!
एक दिन मेरे रसोईघर में काम करते हुए इन्हीं तथाकथित महिला की कर्कश ध्वनि की जलतरंगों के मृदु स्वर रसोईघर की खिड़कियों से लहराते हुए मेरे कानों से जा टकराए ! बिजली सी कौंधी…..आज किसके ऊपर ये अपनी शब्द बाणों की वर्षा कर रहीं हैं…..! मैंने तुरंत ही रसोई घर के गवाक्ष से झाँक कर देखा……कि उन्हीं के पति के ऑफिस में काम करने वाले एक जूनियर की पत्नी पर उनकी वाक वर्षा चल रही थी ! मैंने अपना दरवाज़ा खोल कर बड़ी हिम्मत करके अपने कदम आगे बढाए …..कि आखिर बात क्या है…….तो देखा कि उन महिला का क्रोध में तमतमाया चेहरा बिलकुल लाल था और अनाप-शनाप जो भी मन में आ रहा था बोले जा रहीं थी और दूसरी महिला की हालत देखने लायक थी लेकिन इतना अवश्य था कि वह दूसरी महिला बहुत धीरे-धीरे और सभ्य भाषा में बोल रहीं थींऔर ज्यादा कुछ बोलने की स्थिति में भी नहीं थीक्योंकि वह बहुत सभ्य और सुसंस्कृत महिला थी…… बहुत दूर से महिला के उस विकराल रूप और कर्कश भाषा का सोसायटी की सभी महिलायें दूर से खड़े रहकर ही आनंद ले रहीं थीं क्योकि इनके स्वभाव के कारण सभी परिवार इनसे काफी दूरियां रख कर चलते हैं यह वाक युद्ध संध्या समय करीब चार बजे अपने घमासान पर था जब सभी पुरुष अपने ऑफिस में ही थे इसलिए पुरुष वर्ग इसका आनंद लेने से वंचित रहा ! कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर इतनी सभ्य और सुसंस्कृत महिला पर इनके क्रोध का और अशोभनीय अनर्गल आलाप का क्या कारण हो सकता है……कारण जो भी रहा हो कह नहीं सकती और मैंने कारण जानना भी उचित नहीं समझा……..
पर इतना तो अवश्य है कि अपनी ऐसी कर्कश और अप्रिय वाणी से किसी को भी अपना नहीं बना सकते और किसी का भी हृदय नहीं जीत सकते !
मनुष्य अपनी भावनाओं का अधिकांशतः प्रदर्शन अपने वचनों द्वारा ही करता है
अगर वह कटु भाषा बोलता है तो अपनी ही वाणी का दुरुपयोग करता है और समाज में अपनी प्रतिष्ठा खो बैठता है और अपने जीवन को कष्टकारी बना लेता है|
और वे प्रतिपल अपने विरोधियों व शत्रुओं को जन्म देते हैं | उसे सांसारिक जीवन सदा ऐसे ही झेलना पड़ता है और मुसीबत के समय भी लोग उससे मुंह फेर लेते हैं जबकि इसके विपरीत मृदु वाणी सबका मन मोह लेती है यहाँ तक कि बड़े-बड़े विद्वानों व चिंतकों का हृदय भी ऐसी वाणी सुनकर खिल उठता है ! हमारे मृदु शब्द वास्तव में औषधि के समान दुखी मन का उपचार करते हैं |दीन-दुखी प्राणी को सहानुभूति के मीठे शब्द उतना सुख देते है जितना सुख संसार का कोई भी धनकोष नहीं दे सकता ! मधुर वचन सुनकर श्रोता का तप्त-संतप्त हृदय भी राहत अनुभव करता है !इन मधुर वचनों से पराये भी अपने बन जाते हैं——!इसीलिये संत कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी यही कहा है ——
वशीकरण एक मन्त्र है ताज दे वचन कठोर,
तुलसी मीठे वचन ते सुख उपजत चाहूं ओर
|

अर्थात कठोर वचनों को त्याग कर ही लोगों को अपने वश में किया जा सकता है और मीठे वचन बोलने से सर्वत्र सुख की ही प्राप्ति होती है ! सामजिक मान- प्रतिष्ठा और श्रद्धा का आधार स्तम्भ वाणी ही है | हम अपने वचनों से अपनी सफलता के द्वार खोल सकते हैं या असफलता को निमंत्रण दे सकते हैं |
हम सभी प्राणियों का मानवोचित कर्तव्य है कि दूसरे  की भावनाओं का आदर करें | ऐसा करने से मनुष्य के मनुष्य से गहन सम्बन्ध बनते हैं |
मधुर वचन में वह शक्ति है जो बड़े-बड़े शूरवीरों में नहीं होती……..ये वाणी मनुष्य के हृदय को अत्यधिक प्रभावित कर देती है | हमारी भषा तो पशु-पक्षी भी समझते हैं फिर हम सब तो एक मानव-प्राणी हैं ! इस सम्बन्ध में क्रूर और अत्याचारी डाकू अंगुलिमाल डाकू का ज़िक्र करना चाहूंगी कि उस पर महात्मा बुद्ध के मधुर वचनों का कुछ सम्मोहन सा हो गया था उसने लोगों की कठोर हत्या और हिंसा के मार्ग को छोड़कर धर्म का मार्ग अपना लिया और सन्यासी हो गया !मेरा कहने का तात्पर्य यह नहीं कि हर कोई सन्यासी बन जाये……..बल्कि मधुर वचनों से हृदय परिवर्तन करके किसी को भी सदमार्ग पर लाया जा सकता है ……….! मधुर वाणी के विषय में कबीर दास जी ने भी कहा है………..
ऐसी बानी बोलिए , मान का अप खोय |
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय
||
मधुर वाणी से सामने वाले का मन तो सुखी होता ही है साथ ही अपना मन भी सुखी रहता है !मधुर भाषण से कोमलता,नम्रता,तथा सहिष्णुता की भावना का भी हमारे हृदय में उदय होता है !और फिर इन गुणों से व्यक्ति का व्यक्तित्त्व ही निखर उठता है….!
इस आधार पर निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है की अगर समाज में कुछ मान-प्रतिष्ठा पानी है तो हमें अपनी वाणी पर विशेष ध्यान देते हुए उसे ही अपना आधार स्तम्भ मानना होगा और तभी हमारे अस्तित्त्व को अलग पहचान मिल सकेगी………..! अगर वह पड़ोसी महिला अपनी वाणी पर कुछ नियंत्रण रखते हुए सभ्य भाषा में बात करती तो वह निश्चित ही प्रशंसा की पात्र होती क्योंकि यह मधुर वाणी ही हमारा ऐसा एक शस्त्र है जिससे सभी को वश में किया जा सकता है…..!
हालांकि यह कार्य थोड़ा बहुत कुछ कठिन अवश्य हो सकता है लेकिन शायद असंभव नहीं……..!

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