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इंसानी दुनिया की बेहयाई…..ठंडा श्वेत कफ़न !

sahity kriti
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इस बार हमने शीतावकाश में नैनीताल घूमने का कार्यक्रम बनाया | आलोक के मित्र सुधीर भी बार-बार यहाँ आने को कहते थे | वह पेशे से सरकारी वकील थे और दो बड़े-बड़े होटलों के मालिक भी थे | काफी विचार करने के बाद सोचा क्यों न सर्दियों में नैनीताल के बर्फीले मौसम में वहां की वादियों का लुत्फ़ उठाया जाए साथ ही मित्र के यहाँ न पहुँचने की शिकायत भी दूर हो जायेगी | टैक्सी द्वारा ही नैनीताल जाने का कार्यक्रम बनाया तांकि रास्ते से गुजरते हुए प्राकृतिक दृश्यों का भी आनंद लिया जा सके….. ! मित्र को पहले से ही अपने आने की सूचना दे दी थी तांकि उन्हें कुछ असुविधा न हो और अपने बताये निश्चित दिन मैं और आलोक पहुँच गए |
           हम लोग वहां करीब सभी दर्शनीय स्थलों को देख चुके थे | एक दिन निरुद्देश्य ही वहाँ की सडकों पर घूम-घूम कर नैनीताल की पहाड़ियों का आनंद ले रहे थे जब बहुत थक गए तो सड़क के किनारे एक बेंच पर वहीं बैठ गए |
संध्या धीरे-धीरे चलकर रात्रि की ओर अपने कदम बढ़ा रही थी…..रुई के स्निग्ध छोटे-छोटे टुकड़े-से वाष्प के मेघ खंड बिना किसी रोक-टोक के हमारे सामने से इधर-उधर घूम रहे थे | सर्दीला मौसम बड़ा ही सुहावना लग रहा था | बेंच पर बैठे-बैठे एक घंटा बीत गया……… सोचा अब उठकर घर चला जाए क्योकि दूसरे दिन सुबह ही हम लोगों की अपने घर के लिए वापसी थी |

आलोक वहाँ से उठने का नाम ही नहीं ले रहे थे |मैंने ने जोर से कहा, ” चलो आलोक उठो भी अब , देर बहुत हो गयी| ”
लगता जैसे कुछ सनक सवार हो गयी | ….लगातार सामने की ओर एकटक आँखों से देखे ही जा रहे थे मानो कोई गहन चिंतन कर रहे हों ! मेरी आवाज़ भी नहीं सुनी…..मेरे शब्द जैसे हवा में बह गए…….! मैंने पुनः आलोक के कंधे पर हाथ रख कर हिलाते हुए उठाने की कोशिश की…….फिर भी नहीं उठे…….और (अपनी तर्जनी उंगली से कुछ दिखाने का संकेत करते हुए) मुझसे बोले ,” वह देखो सामने……….”
मैंने देखा….. कुछ ही कदमों की दूरी पर कुहासे की धुंध में एक अस्पष्ट सी आकृति……..हमारी ही तरफ आ रही थी…………..|
        मैंने कहा, ” होगा कोई आदमी…..” जब एक हाथ की दूरी रह गयी लगा अपने ही नजदीक आती वह आकृति पूर्णतः स्पष्ट हो गयी | एक लड़का आता दिखाई पडा…….सिर के बड़े-बड़े व बिखरे से बाल……… मैले कुचैले से कपडे पहने हुए तथा हाथ-पैर पर मैल की परतें सी जमी हुईं…..माथे पर झुर्रियां पडी हुईं…….बड़ी-बड़ी आँखों में सूनापन लिए हुए…….! सड़क के मद्धिम प्रकाश में जब देखा तो वह करीब दस या बारह बरस का रहा होगा ! एकाकीपन लिए हुए था………न आगे देखता और न पीछे…….बस धीमी-धीमी गति से चलता ही जा रहा था……..वह शायद हमें भी नहीं देख पाया था…….! मुरझाया सा चेहरा……. स्वयम ही नहीं पता कहाँ जाना है…..? किस दिशा की ओर मुड़ना है………..?.शायद अपने वर्तमान को देखते हुए एक कदम कहीं तो दूसरा कदम कहीं रखते हुए चला आ रहा था……..|

आलोक ने कहा, ” ऐ बालक !” वह आवाज़ सुनकर कुछ रुका-
” तू अभी तक सोया नहीं, जबकि सभी सो रहे हैं !”
वह कुछ नहीं बोला अपनी मूक भाषा में उसका चेहरा बोल रहा था | आलोक उससे बहुत कुछ पूछना चाह रहे थे शायद उससे कुछ कहलवाना चाह रहे हों…..!
” नहीं सोया !”
” कहाँ सोएगा?” आलोक ने पूछा
” यहीं कहीं किसी जगह !” उसने फुसफुसाती भाषा में कहा
” तो कल तू कहाँ सोया था? ”
” सेठ के घर पर |”
” तो फिर आज क्यों नहीं गया वहां?”
” सेठ ने नौकरी से निकाल दिया |”
आलोक ने नौकरी से निकाले जाने का कारण जानना चाह- ” सेठ ने क्यों निकाला नौकरी से ?”
“नहीं पता ” वह बोला
” चोरी की थी क्या?”
” नहीं”
” वहां क्या करता था ?”
” सभी काम करता था|”
” सेठ तुझे क्या देता था?”
” तीस रुपये और बचा कुचा खाना और पुराने कपडे बस और कुछ नहीं |”
” फिर अब क्या करेगा?”
“नहीं पता ”
” अच्छा यह बता कि तूने आज खाना खाया कि नहीं?
“नहीं ”
” फिर आज क्या खायेगा?”
” कुछ नहीं”
” कुछ आज कहीं से मिलेगा !
“नहीं ”
आलोक बराबर सवाल पूछे जा रहे थे और वह भी अपनी सूनी आँखों से एक दो शब्दों में जवाब दे रहा था | अब रात्रि भी अपन चरम यौवन पर पहुँच चुकी थी !
कोहरे की घनी चादर में मैं आलोक और वह लड़का…………अभी भी उनके प्रश्नों की झड़ी लगी हुई थी………. शायद कुछ और जानना चाह रहे हों………
” सुन बालक, तेरे माँ-बाप हैं?”
” हाँ हैं | ”
” कहाँ रहते हैं?”
” यहाँ से दो मील दूर मेरा गाँव है वहां |”
” तब फिर तू क्यों नहीं रहता अपने माँ-बाप के पास गाँव में | क्यों चला आया यहाँ ?”
” भाग आया वहाँ से ”
” आखिर क्यों ?”
” वहाँ काम नहीं मिलता | चार भाई-बहन हैं, भूखे रहते हैं | माँ-बाप बूढ़े हैं, बाप कुछ नहीं करता | माँ बीमार रहती है…….चीखती चिल्लाती रहती है | इसलिए भाग आया अपने ही गाँव के एक लडके के साथ | ” वह बताता रहा मैं और आलोक निशब्द होकर सुनते रहे |
” वह लड़का कहाँ गया?” आलोक ने पूछा
” वह तो ठण्ड से मर गया |” उसने कहा
” तो तू अब अकेला ही रह गया |”
” हाँ ! ”
” मैं अगर तुझे काम दिलाऊँ तो करेगा?” आलोक ने उसके मन की बात जाननी चाही |
” हाँ करूंगा !”
” अच्छा, चल आ जा मेरे साथ | ”
मैं, आलोक और वह लड़का दोस्त के घर पर आ गए | पर वह लड़का संकोचवश दरवाज़े पर ही सर्दी से ठिठुरता हुआ खडा रहा, अन्दर तक नहीं आया…………..|
आलोक ने मित्र से कहा , ” सुधीर तुम्हें एक छोटा लड़का चाहिए क्या?”
” हाँ चाहिए , पर तुम्हारे पास कहाँ है? तुम किसे जानते हो यहाँ ?” सुधीर अपना गाउन पहनते हुए कमरे से बाहर आता हुआ बोल रहा था
” देखो, मैं इस लडके को लाया हूँ | बेचारा बहुत गरीब है…………..” आलोक की बात अभी पूरी भी नहीं हो पायी थी……….सुधीर ने एक नज़र उस लडके पर डाली और उसे देखते ही कहा, ” कौन है ये………? कैसा है……..? पता नहीं कहाँ से इसे उठा लाये हो…………? तुम कैसे पहचानते हो……? क्या तुम इसे जानते हो……..?” अनेक प्रश्नों की बौछार सी कर दी| और मैं कभी आलोक को और कभी सुधीर को देखती………..!
” हाँ मैं जानता हूँ इसे……. बहुत सीधा है……यह चोरी नहीं करेगा…….बेचारे के माँ-बाप व भाई- बहन को एक जून रोटी भी नहीं मिलती……..तुम कुछ दिन उसे रखकर देखो तो सही…….. ” आलोक सुधीर को अपनी बात समझाने का प्रयत्न कर रहा था |
” सैकड़ों आते हैं ऐसे……. रोज़ नौकरी माँगते हैं……..इनका न कोई ईमान है और न कोई धर्म………आँख बचते ही चोरी करके साफ़ भाग जाते हैं……. फिर कहाँ ढूँढते फिरेंगे……….अभी ज़रुरत नहीं है…………!” सुधीर ने बड़े ही रूखेपन से कहा|

मैं दोनों की बातें चुपचाप सुन रही थी………सुधीर के एक-एक शब्द तीर की तरह हृदय का भेदन कर रहा था | मैं और आलोक बड़े ही असमंजस में थे उसे यहाँ बड़ी ही उम्मीदों के साथ लाये थे……….अब क्या करें उस छोटे से बच्चे का………तो अविलम्ब ही मैंने और आलोक ने निश्चय किया कि हम लोग अपने साथ उसे लिए चलेंगे अपने घर………..|
पीछे मुड़कर देखा वह बालक वहां था ही नहीं | दरवाज़े से बाहर देखा……… एक प्रेत की तरह ही घने कोहरे की धुंध में कहीं खो गया……….!आलोक कह रहे थे ‘ उसके पास तो कोई गरम कपड़ा भी नहीं……….बेचारा कहीं पडा हुआ कड़ी शीत से ठिठुर रहा होगा ……………..क्या है यह दुनिया…………. यह ….स्वार्थ………पैसा………धनलोलुपता………..या फिर लोगों की बेहयाई………. !
मैं और आलोक सुबह उठे बाहर जाकर बहुत दूर तक देखा………….पर वह बालक किसी माँ का बेटा लौटकर नहीं आया………..! चूंकि हमें भी जाना था इसलिए मित्र को अलविदा कहकर टैक्सी बुलाई और कुछ खट्टे अनुभवों के साथ वहां से चल दिए………!
थोड़ी दूर चले ही थे कि रास्ते में भीड़ इकट्ठी देखी………….मन उद्वेलित तो हो ही रहा था…………उस पर ये भीड़………….आखिर बात क्या है…………? टैक्सी ड्राइवर को रुकने के लिए आलोक ने बोला…… ड्राइवर ने भीड़ से थोड़ी दूरी के फासले पर टैक्सी रोक दी……….हम लोग टैक्सी से उतरकर भीड़ की ओर बड़े ही थे कि
वहां का दृश्य देखकर स्तब्ध रह गए……….! अकस्मात् ही मुंह से शब्द निकल पड़े………’ अरे, यह तो वही लड़का……..! ‘ वहाँ खड़े लोगों से पूछा….’ क्या हुआ ? ‘
लोगों ने बताया,` दस-बारह बरस का बालक सड़क के किनारे पर पेड़ के नीचे सो रहा था…….ठण्ड से ठिठुर कर मर गया………तन पर केवल एक मैली सी कमीज़ थी………..!’ बहुत ही क्षोभ हुआ……… सच आदमी की दुनिया कितनी बेशर्म है………….और उसके लिए उन्होने यही उपहार में दिया…….! मैं और आलोक उस बच्चे के और नज़दीक आए……..उसे देखा……तो लग रहा था जैसे प्रकृति भी शरमा गयी हो लोगों की बेहयाई देखकर………उसके पूरे शरीर को मुँह से लेकर पैरों तक बर्फ की चादर ने पूरी तरह ढक दिया……… मानो पृकृति जोर-जोर से चिल्लाकर कह रही हो……….हे इंसानों की दुनिया वालों ! मैंने इसके शव के लिए श्वेत व ठन्डे कफ़न का प्रबंध कर दिया है !

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