sahity kriti
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झर-झर झरती फुहारें
तीव्रतर बहतीं शीत बयारें |
तीर सी चुभतीं गात में
मन हो जाता हर्षित पल में |
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मन मानस में कल-कल करतीं तरंगें
ज्यों सागर में शोर मचातीं लहरें
आओ सखी गीत मल्हार गायें
कुछ अंतर्मन की बात बताएं
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गरज-गरज कर मेघ झमाझम जल बरसायें
हरित श्यामला अवनि को उन्मत्त बनाएं |
शुष्क सरिताओं में नव जीवन आये
वन उपवन में नव अंकुर उग आये |
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नव कलिकाएँ घूंघट खोलतीं
मंद-मंद हँसी बिखेरतीं जैसे |
झरोखे से कोई नव दुल्हन झाँकती
मनहुँ वसुधा का सौन्दर्य आँकती |
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झर-झर झरती फुहारें
तीव्रतर बहतीं शीत बयारें
(सभी चित्र गूगल से साभार )************——–***********
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