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सूर्य के प्रचंड आतप से तप्त
और लू से संतप्त ,
धरा पर नव जीवन का सन्देश
लिए आई यह पावस ऋतु !
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कर बहुरंगी श्रृंगार वर्षा ने किया हास-परिहास
दादुर ने किया वर्षा का स्वागत |
लहर-लहर लहराई चहुँ दिसि
वर्षा की द्युति दामिनी |
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चपल चपला चमकी जब
हृदय तंत्री भी हुयी झंकृत तब
घुमड़-घुमड़ आये कारे बदरा
सघन घन मालाओं के बीच
रवि, शशि ताराओं ने मेघों की चादर ओढ़ी
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मेघ गर्जन सुनकर मयूर भी
हुए नृत्य करने को आतुर
श्याम घन औ तरंगिनी बीच वक हुए शोभित
मनहुँ सांवरे की माला श्वेत मोती जडित |
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मेघों की कजरी कजरारी छवि
करती आँख मिचौनी सुनहरी घाम
इन्द्रधनुष के सप्त रंगी रंग में
संध्या भी हुई बहुरंगी |
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इत-उत दौड़ लगाते मेघ खंड
क्षण-क्षण हो रही झमाझम वर्षा
हरित श्यामला हो रही वसुंधरा
निमुवा की डार पड़ गए झूले
कमला गाती सावन मल्हार !
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धरा वधु हुई रस विभोर
आह्लादित मन में हुई वर्षा घनघोर
वसुधा के घोर तप्त अंतस पर
मनुहार करवाती इठलाती आती
यह पावस ऋतु इठलाती आती पावस ऋतु !
जागरण मंच के सभी बलॉगर साथियों को हरियाली तीज की हार्दिक शुभकामनाएं !
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