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उस दिन एकांत के क्षणों में बैठकर अरसों पहले की भूली बिसरी यादों में कहीं खो गयी थी | स्मृति पटल पर अंकित अतीत की सारी स्मृतियाँ मानो साकार हो उठी थीं | अपने कॉलेज के दिनों में फिर से लौट आई थी | स्कूल व कॉलेज में बिताये दिनों की यादें ऐसे लगने लगीं जैसे कल की ही बातें हों |
कुछ व्यक्तित्त्व ऐसे होते हैं जो दूसरों के जीवन पर अपनी अमिट छाप छोड़कर दुनिया में गुमनामी के अँधेरे में कहीं गुम हो जाते हैं | बात उस समय की है जब मैं १२वी कक्षा की छात्रा थी| कॉलेज में एक नई हिंदी शिक्षिका की नियुक्ति हुई थी | वह बहुत ही अनुशासनप्रिय, कर्मठ साथ ही अति स्नेही व्यवहार वालीं थीं | कक्षा में उनके प्रवेश करते ही वातावरण में अजीब सी खामोशी छा जाती थी यहाँ तक कि एक सुई के गिरने की आवाज़ को भी सुना जा सकता था | उस समय वह जो भी पढ़ातीं थीं सभी छात्र छात्राएं विषय को हृदयंगम कर लेते थे और हर किसी की समस्या का समाधान अपनी कुशल शिक्षण गुणवत्ता व विद्वता से कर देतीं थीं | सभी अन्य शिक्षिकाओं व छात्र-छात्राओं के बीच उनकी छवि एक आदर्श शिक्षिका के रूप में थी | अपने स्कूल क्षेत्र से अलग जब भी वह कुछ बात करती थी तो मैं ऐसा अनुभव करती थी कि जैसे उनके अंतर की व्यथा अभिव्यक्ति पाने के लिए व्यग्र हो रही हो और सभी के जीवन को आनंद से प्लावित करने का बीड़ा उठाया हो ! उनका हृदय फूल की तरह कोमल और दर्पण की तरह पारदर्शक था | पता नहीं क्यों इस शिक्षिका का एक निखरता व मँजा हुआ चित्र मेरे ज़हन में श्रद्धापूर्वक उभरता चला गया जो आज भी मेरी स्मृतियों के एक कोने में अपना स्थाई निवास बनाये हुए है |उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में कुछ जानने की जिज्ञासा सी हुई | चूंकि मेरे साथ उनकी बहुत आत्मीयता थी इसलिए बात करते-करते भावावेश में उन्होंने अपने अतीत के खट्टे-मीठे सारे ही अनुभवों को मेरे साथ बांटा | और अंत में यह भी कहा था कि व्यक्ति के जीवन में उसकी पारिवारिक परिस्थितियों व सामजिक बंधनों की अहम् भूमिका होती है | ( अरसे पहले अपने छात्र जीवन में इस शिक्षिका के साथ हुए वार्तालाप के कुछ अंश आज भी मेरे मस्तिष्क के एक कोने में विद्यमान है जब कि अन्य बातें समय रफ़्तार की घनी छाया में विस्मृत हो चुकी हैं ) आज उनके विषय में यही कह सकती हूँ कि अपने जीवन के कंकरीले पथरीले दुरूह पथ पर चलते हुए अपनी मंजिल को तलाशा किसी तरह अपनी शिक्षा पूर्ण की और शिक्षण के क्षेत्र से जुड़ीं और साहित्य की सेवा की और अपने जीवन को एक नई दिशा की ओर मोड़ लिया जो उनके लिए कठिन तपस्या थी | वह अपने सभी छात्र छात्राओं के लिए प्रकाश स्तम्भ व आदर की पात्र थीं |
ऐसी दशा में परिस्थितियां स्वयं ही व्यक्ति की दास हो जायेंगी न कि व्यक्ति परिस्थितियों का दास और वह हर परिस्थिति को अपने अनुकूल ढाल लेगा |जैसा कि हमारी इन शिक्षिका के विषय में यह सत्य ही प्रमाणित हुआ | शिक्षक दिवस के अवसर पर इस शिक्षिका के लिए ये शब्द ही सच्ची श्रद्धांजलि होंगे…….
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा है कि “ शिक्षक को मात्र अच्छी तरह अध्यापन करके संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए ,उसे अपने छात्रों का स्नेह और आदर अर्जित करना चाहिए | सम्मान शिक्षक होने भर से नहीं मिलता , उसे अर्जित करना पड़ता है |” इस बात पर मुझे शेक्सपीयर की ये पंक्तियाँ याद आ रहीं हैं……….
“The teacher is a potential leader of his students with certain purpose .”
HAPPY TEACHERS DAY !!!!!
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