sahity kriti
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बालक माँ से बोला–
माँ तू क्यों बैठी चुप
बोल ना तू कुछ !
माँ बोली –
अच्छा तो सुन….
आँगन में बैठी गुनगुनी धुप का आनंद ले रही थी
चिड़िया को चावल के दाने खिला रही थी |
चीं चीं करतीं चिड़ियाँ आतीं
एक-एक दाना चावल का खातीं |
मुँह खोलकर एक दाना
नन्हें बच्चे को भी खिलातीं |
सुन बालक को हुई जिज्ञासा
पूछ बैठा वह–
क्या तू खिलाती थी मुझे भी ऐसे….?
” हाँ हाँ मैं भी ऐसे ही
खिलाती थी तुझे |
क्या याद नहीं वह दिन….
पालने में सोता था जब
मुँह खोलकर दूध पिलाती
लोरी गा गाकर तुझे सुलाती |
हाँ माँ कह फिर तू क्या करती…?
” फिर—- दोनों ही
एक ही पटल की छाया में रहते
कभी न किसी से विलग होते “
और कह उठती —
इंद्र धनुषी रंगों में रंगा मेरा नंदन वन
चाँद सूरज तक महके मेरा उपवन !!
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