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शीत से ठिठुरे तन को मिली सौगात…….वसंत के आगमन पर

sahity kriti
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हे ऋतुराज वसंत ! पीताम्बरी ओढ़े तुम आये
शस्य श्यामला धरिणी करे कोटि कोटि स्वागत !
सूर्य रश्मियों ने किया वसुधा का स्पर्श जब
शीत से ठिठुरे तन को मिली सौगात तुम्हारी तब |
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घूंघट की ओट से झांकती
नव कलिकाएँ कुसुमित|
नव किसलय हुए विकसित
हर लता हो रही पल्लवित |
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जब चलती वासंती पवन
होकर जाती हर झोंपड़ी भवन |
बिखेर जाती सुगंध अनुपम
सुरभित हो जाते समस्त उपवन |
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खेत-खेत जब सरसों फूली
धरा वधु ने तब ओढ़ी पीत चुनरी |
हवा चली जब सरसों सारी लहराई
पीताम्बर ओढ़े बालाएं नृत्य करती चली आई |
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उपवन में फैल रहा मधु पराग
तरु-तरु पर गा रही पिक मधु गान |
हे ऋतुराज ! जब चलती वासंती बयार
विविध रंग में रंग जाता हर इंसान |
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हे ऋतुराज वसंत ! पीताम्बरी ओढ़े तुम आये
शस्य श्यामला धारिणी करे कोटि-कोटि स्वागत
जब चले यह वासंती बयार
हे ऋतुराज ! होवे अभिनन्दन तुम्हारा हर बार !!
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