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रंग उड़े सद्भावनाओं के गुलाल का

sahity kriti
sahity kriti
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सिसकती धरा आतंक और भ्रष्टाचार से,
मृतप्राय हो रहीं अभिलाषाएं हर ओर से|
नैनों से उमड़ रहा सैलाव वेदनाओं का ,
अंधेरों में विलुप्त हुआ हास्य मानव का |
कैसे खेलें अब रंग अबीर गुलाल का !
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न रहे धर्म जात का भेद तनिक कहीं ,
हिन्दू,मुस्लिम,सिख, ईसाई सब यहीं |
गाँधी हो कहीं तो कहीं गौतम बुद्ध ,
कहीं हो मुहम्मद तो कहीं संत जन |
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न कहीं छाये घर में किसी के वीरानी,
माँ बहनों की मांग औ गोद न हो सूनी|
भर प्रेम रंग अखंड विश्वास की झोली,
यहाँ वहाँ सभी मिल संग खेलें होली |
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चहुँ दिसि प्रसरित हो रंग ख़ुशी का ,
रंग उड़े सद्भावनाओं के गुलाल का |
बोझ न पड़े उर पर गिले-शिकवों का ,
सब रंगों में मिला अबीर हास्य का |
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मिलजुल संग खेलें अब होली प्रेम रंग की ,
फीकी न हो रंगत इन्द्रधनुषी गुलाल की |
आओ सब रंग जाएँ प्रेम रंग की धार में ,
बहुरंगी खुशियाँ लहराएँ हर जीवन के आँचल में |

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जागरण परिवार के सभी सदस्यों , इस मंच के सभी ब्लॉगर साथियों व उनके परिवार को होली के शुभ अवसर पर इस रंगीन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं !
अलका

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