Menu
blogid : 3412 postid : 715

अनुत्तरित प्रश्न……. दुहिता की भिक्षा !

sahity kriti
sahity kriti
  • 90 Posts
  • 2777 Comments

तीन रूप लेकर जग में आती
माँ के ममत्त्व का सागर उड़ेलती |
पति- प्रेम में उन्मत्त प्रेम-रस की वर्षा करती
ये बेटी ही तो वात्सल्य की बौछारें करती |
————————————————-
अय माँ ! मैं तो तेरे ही वंश का अंश,
क्यों करती तू मेरा सर्वदंश ?
क्या तू भूल गयी यहाँ ——
अपने ही रक्त की बहाईं थी नदियाँ?
———————————————-
एक नारी से ही तू भी जन्मी ,
धन्य हो पृथ्वी पर वह नारी !
जिसने वीर सुभाष औ गांधी दिए !
इंदिरा औ झांसी की रानी को
तुझ-सी नारी ने ही जन्मा !
————————————————
क्या मुझे नहीं देगी यह अधिकार तू !
क्यों छीन रही हक़ मेरा यूं ?
उत्कट अभिलाषा है मन में
जग में तो आने दे मेरी मैया !
————————————————-
मन पर राज करूंगी तुम्हारे
तन्हाई जब गले लगेगी आके |
भड़केगी ‘भीतर’ जब कोई चिंगारी
राह देखती होगी तू भी——–
—————————————————
किसी दीप-शिखा के आने की !
वही ज्योति तेरी बनूँगी
स्वालोक से तुझे आलोकित करूंगी !
मत छीन मेरा अधिकार माँ……….!
मुझे आने दे जग में माँ…………..!

***********———-***********

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to Rajkamal SharmaCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh