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मानव प्रकृति और फाल्स सीलिंग…..!

sahity kriti
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कभी व्यक्तिगत व्यस्तता ,कभी यात्रायें ,कभी लैप टॉप की आकस्मिक अस्वस्थता तो कभी नेट के नाज़ नखरे और कभी निर्माणाधीन आशियाने का निरीक्षण सब कुल मिला कर ये ही सब कारण थे जिनकी वजह से मैं मंच पर इतने दिनों तक अनुपस्थित रही और लेखनी भी सुप्त रही | और जब अपनी जाग्रत अवस्था में आई तो यह अपने सभी लेखनी मित्रों से कुछ गुफ्तगू करने व मिलने के लिए विकल होने लगी और फिर अवसर पाकर अविलम्ब ही जे जे परिवार के सभी घर- द्वार होती हुई और गवाक्षों से झांकती और हुई दौड़ी-दौड़ी यहाँ तक चली आई और मैं भी सरे राह चलते-चलते कुछ कहने आप सबके पास चली आई……… |
व्यस्तता तो व्यक्ति के जीवन का एक अंग है यह बात अलग है कि हम सब स्वयं को किस तरह और कैसे व्यस्त रखते हैं और हम अपने चतुर्दिक बहुत कुछ ऐसा देखते व सुनते हैं हैं जो कुछ सोचने व विचार करने को विवश करता है…….|
अपने निर्माणाधीन घर के बाथरूम में बनायीं जाने वाली ‘फाल्स सीलिंग’ ( कृत्रिम छत ) को देखा तो कुछ देर तक तो देखती ही रही क्योंकि फाल्स सीलिंग से पहले की छत देखने में अच्छी नहीं लग रही थी क्योंकि वहां लगायी जाने वाली सभी चीज़ें बहुत ही अस्त- व्यस्त थीं जिसे मकान बनाने वाले शिल्पकारों ने सभी कुछ व्यवस्थित करके फाल्स सीलिंग के द्वारा बड़ा ही सुन्दर रूप दे दिया था…… | यहाँ एक प्रश्न मन में उठ रहा है कि क्या मानव प्रकृति भी ऐसी ही है क्या मानव व्यवहार की तुलना इस फाल्स सीलिंग से की जा सकती है…? मेरी दृष्टि में इसका उत्तर सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी | सकारात्मक इसलिए कि कई लोग अपने कृत्रिम व्यवहार द्वारा लोगों को रिझाने या प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं और नकारात्मक इसलिए कि कुछ लोगों के व्यवहार में कृत्रिमता नहीं होती है वाह्य व आतंरिक रूप से सामान ही होते हैं मैंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि दोनों ही वर्ग के लोग मेरे संपर्क में आये हैं और पृथक-पृथक धारणाएं बनी……!|

हमारे जीवन में बहुत से ऐसे व्यक्ति संपर्क में आते हैं जो वाह्य रूप से हर तरह से तो पूर्ण दिखाई देते हैं , जो मृदु और शालीन हैं किन्तु उनके हृदय में कटुता है ….संकीर्णता है…और है स्वार्थीपन…..| यदि ऐसे लोगों की तुलना इसी कृत्रिम छत से की जाये तो कोई अतिश्योक्ति न होगी जो वाह्य रूप से तो देखने में बहुत ही सुन्दर लगते हैं किन्तु अन्दर से अव्यवस्थित और कुरूप | अपने अवगुणों को वे कृत्रिम व्यवहार से छिपाने का प्रयास करते हैं |यदि थोड़ी गहनता से उन्हें परख लिया जाये तो उनके अन्तर्हित अवगुणों की वास्तविकता प्रकाश में आ ही जाती है यह बात अलग है की व्यावहारिकता की दृष्टि से ऐसा बहुत कम ही हो पाता है|
यहाँ हम यह कह सकते हैं कि यदि हमारा व्यक्तित्त्व आतंरिक रूप से व्यवस्थित हैं, दृढ- प्रतिज्ञ और हृदय से शुद्ध हैं ,व्यवहार में कोई भी कृत्रिमता नहीं हैं तो हम लोगों को प्रभावित कर सकते हैं व प्रगाढ़ तथा मधुर सम्बन्ध भी बना सकते हैं और यदि हमारा व्यक्तित्त्व आतंरिक रूप से अव्यवस्थित है.मन में कोई भी दुराव-छिपाव या छल-कपट है और अपने व्यवहार में कृत्रिमता है तो लोगों को प्रभावित करने का या फिर सम्बन्ध बनाने का प्रयास करें तो अत्यल्प समय के लिए ही सफलता मिल सकती है लेकिन जब हमारा रहस्य खुल जाता है तो स्थिति देखते ही बनती है और तुरंत ही उस स्थिति से पलायन करना चाहते हैं …….. हमारे लिए एक मुश्किल खड़ी हो जाती है …….ठीक उसी तरह जैसे कृत्रिम छत बनाते समय अन्दर का कार्य ठीक से न हो तो कभी भी कठिनाई आ सकती है और अन्दर का कार्य ठीक से करने के लिए संयम व कठिन परिश्रम की आवश्यकता होती है जोकि लम्बे समय में उपयोगी होती है | इसी प्रकार व्यक्तित्त्व व व्यवहार को आतंरिक रूप से ठीक करने के लिए संयम और परिश्रम की आवश्यकता होती है और साथ ही वाह्य व्यक्तित्त्व और व्यवहार को भी संवार लिया जाये तो दीर्घकालीन सफलता प्राप्त कर सकते हैं |
यहाँ मेरा ऐसा मानना है कि कृत्रिम व्यवहार को ही अधिक महत्त्व देने वाले व्यक्तियों को दीर्घकाल में इस स्थिति में परिवर्तन की आवश्यकता होती है तभी हम अपने व्यवहार और व्यक्तित्त्व से लोगों को प्रभावित कर सकते हैं उनसे मधुर संबध बना सकते हैं और अपने जीवन के उद्देश्य प्राप्ति में सफल होंगे |
कभी किसी पुस्तक में ( इस समय पुस्तक और लेखक का नाम याद नहीं आ रहा है लेकिन यह वाक्य अवश्य अभी तक स्मरण है ) मैंने यह सत्य उक्ति पढ़ी था ‘ महत्त्वपूर्ण होना अच्छा है , किन्तु अच्छा होना अधिक महत्त्वपूर्ण है |’
तो फिर क्यों न हम अच्छा होने का महत्त्व समझें तांकि जीवन की दीर्घकालीन सफलता प्राप्त कर सकें……! कहते है कि जीव को मानव योनी केवल एक बार ही मिलती है फिर क्यों न हम इस संसार में सम्मानपूर्वक जीयें और सम्मानपूर्वक जीने के लिए हमें वही होना चाहिए जो हम दिखाई दें……!

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