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कुछ कदम समय के साथ

sahity kriti
sahity kriti
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बाह्य आडम्बर से विलग हो,
छिद्रान्वेषण को दूर कर,
खुले आँगन में पस्पर मिल बैठ,
एक दूजे की सुध में,
कुछ कदम समय के साथ
चलकर तो देखो !
दारिद्रय के दंश को झेल,
जर्जर होती काया जिनकी,
अनगिनत हाथ फैलाते जो ,
दाने -दाने को यहाँ-वहाँ…..
प्रबल होती भूखाग्नि में उनकी ,
ज़रा जलकर तो देखो |
आकाश की छत तले घरौंदा बना
जीने को विवश,
हँसी नहीं चेहरे पे
पड़े हों जैसे—
कोई मुरझाया फूल |
मुख पर मुट्ठी भर ख़ुशी लाकर
साथ उनके दुःख दर्द में,
हृदय को अपने
पिघलाकर तो देखो |
नीलाम होती जहाँ तहाँ ,
अस्मिता बालाओं की,
सड़क को ‘दर्शकदीर्घा ‘ बना
दर्शक बन मत निहारो इनको |
प्रकाश-स्तम्भ बन इनका
सबल संबल बनकर तो देखो |
आश्रय बन उठ जायेंगे
असंख्य हाथ चहुँ दिसि ,
हो जाएगा नव निर्माण
सृष्टि का तुम्हारे हाथों !
अपनी सर्जना में इन्द्रधनुषी रंग
भरकर तो देखो !
सृजित हो उठेगा–
नव जीवन का इतिहास कोई
नव जीवन का इतिहास….नव जीवन का इतिहास !
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