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सद्बुद्धि के बगीचे में……..

sahity kriti
sahity kriti
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ये पंक्तियाँ ३० दिसंबर २०१२ को लिखीं गयीं थीं…….

नए उगते सूरज की किरणें धरती पर
भुजाएँ पसार भी न पायीं थीं
कि घने अन्धकार बीच ‘उसकी ‘
क्रान्ति की मशाल जल उठी |
असह्य दर्द सहते-सहते
छोड़ गयी वह अनुत्तरित प्रश्न …
‘तुमने ‘ तो मुझे दिया
आकाश, प्राण , तन, मन
थीं मेरी अभिलाषाएं अनंत
फिर क्यों छीना गया
हक़ मेरा जीने का ?
क्यों दुशासनों ने किया चीर हरण ,
और किया मर्दन भावनाओं का
नव वर्ष के आगाज़ में ?
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हे हरि ! हर कर त्रस्त जग अँधियारा
भर दो उजास नवल भोर में ऐसा कि …
ज्योति किरण से हो जगत उजियारा |
न चौपड़ बिछे रावण-दुशासन की ,
करे न कोई राक्षस अपनी मनमानी |
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अँखियाँ कोई दुःख से अब भर न जाये
शहर,गाँव, घर-घर सुख शांति भर जाये |
हर ‘लता ‘ पल्लवित हो न कोई कुम्हलाये
चहुँ दिसि वातावरण भी स्वस्थ बन जाये |
नयी सौगातों से खुशियों की छत बन जाये
दुःख के साये में उदासी कभी न आये |
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आओ, अब तो सद्बुद्धि के बगीचे में
सद्विचारों के रंग-बिरंगे फूल खिलाएं !
हर ‘खिलती कली’ के अधर मुस्कराएँ !
यही है जीवन का सच जो समझ आये !!!
हे हरि ! हर कर त्रस्त जगत अँधियारा
भर दो उजास नवल भोर में ऐसा कि
ज्योति किरण से हो जगत उजियारा |
हो जगत उजियारा..जग सारा उजियारा !!!!!
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