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गुम हो गयीं क़ानून की लाशें

sahity kriti
sahity kriti
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समय आ गया है मेरे बांधव बंधुओं
उठा लो खड्ग हथियार अब तो अपने हाथों |
रक्तिम स्याही से लिख दो
भाग्य इतिहास अब तो |
हो रहे ढेरों ज़ुल्म पर ज़ुल्म
बढ़ रहे बलात्कारी अत्याचारम
अँधेरी खाई में कहीं गुम
हो गयीं कानून की लाशें
इंसानियत बेच कर भाग चले
क्यों इंसानियत से दूर तुम
बेबसी को न बनाओ हमदम
राह खड़ी हर मुश्किल का
बस निकालो कसकर दम |
मत हो मजबूर तुम अब जूझो !
गर मौत भी साया बनकर आये
न्याय खुद लो औरों को भी दिलाओ
जागो उठो ! अब तक बहुत सहे
अन्याय अत्याचार के ज़ुल्म
दूर करो अब अन्धकार
भर दो उजास जन-जन के अंतर-घट में
जला दो मशाल अब स्वयं   न्याय की
जगा दो जन-जन में
`कर्मन्याधिकारास्ते मा फलेषु कदाचन ‘
का अलख अब तुम ……..
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