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रात्रि के यौवन पर चाँदनी रात में
सपनों की बयार का आनंद ले रही थी,
मन ही मन चित्रों को उकेर रही थी |
कि सहसा अंतस द्वार पर दस्तक हुई –
डरी, सहमी . सकुचाई सी
भीतर से ही पूछा ,` कौन हो तुम ?’
नहीं जानती क्या मुझे तू ….
हाँ, मैं हूँ वर्ष दो हज़ार तेरह !
खट्टी-मीठी स्मृतियों की चादर अंतस पर्यंक पर बिछा
खड़ा हूँ मैं पार्श्व में कहने को अलविदा !
मन की साँकल खोली कह दिया अलविदा उसे
कि तभी शनैः शनैः प्रवेश करती कोई परछाई…
बाँहें पसारे सामने खड़ा था ‘ दो हज़ार चौदह ‘!
ढेरों सौगात लिए आलिंगन करने को बेताब |
मेरे अंतर्चक्षुओं ने किया दो हज़ार चौदह से गठबंधन
श्वास के हर धागे से बंधा यह जटिल बंधन !
सद्यः किया अभिनन्दन…..किया अभिनन्दन !
चलो चलें चमन की ओर …..चमन की ओर
नव सन्देश लेकर आने को आतुर सुहानी भोर !
नव वर्ष के नव विहान में पग-पग पर बनाएँ मीत
जीवन की मधुर संगीत लहरी में गुनगुनाएं खुशी के गीत |
बोयें बीज इंसानियत के
औ करें नयी सृजनाएं
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की जग में अलख जगाएं |
सद्भावनाओं के सागर में उठ जाएँ हिलोर
पापी ,अपराधी,पाखंडी को कहीं मिले न ठौर|
हों सभी में प्रसरित प्यार, अमन, चैन औ सुसंस्कार
न गिरे बम न हो आतंक और न हो कहीं देह-व्यापार|
बहे चतुर्दिक नेह, सौहार्द मानवता की सुरभित पवन
मिटें कलुष सभी अंतस के हो सुगन्धित ये चमन |
जलता है मोम जब होता है कोई नव सृजन सब ओर
इस नवसृजन में लगे शक्ति घनघोर……पुरजोर
आओ चलें चमन की ओर जहाँ हो रहीं आने को आतुर
नवोदित सुहानी भोर …..नवोदित सुहानी भोर !!!!!
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