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भ्रष्टाचार के तमस में अपना एक दीप जलाओ ,
सुप्त हो गयी यहाँ इंसानियत उसे तुम जगाओ |
प्रतीक्षा की घड़ियों से तो बढ़ता घना अन्धकार है ,
अन्धकार में खोयी मानवता जगाना निराधार है |
गर तू करेगा प्रज्जवलित दीप अपने मानव मन का धरा पर ,
आलोकित होंगी राहें चल पड़ेंगे करोड़ों कदम उन्हीं राहों पर |
जलते हुए तेरे दीप से अन्य भी स्व ‘मानव -दीप’ जलाएंगे ,
दूर होगा अन्धकार मानवता के असंख्य दीये जगमगायेंगे |
फंसा अगर कहीं तू ‘दलदल’ में तो क्रोध न दिखाओ ,
जय होगी तेरी बुराइयों पर मानवता के वाण चलाओ |
कौरव पांडव सभी यहाँ महाभारत का रणक्षेत्र बनाओ ,
असंख्य कौरव देख असमंजस में न पड़ आगे आओ |
मत कर देरी तू अब धर्म अपना जल्द निभाओ
भ्रष्टाचार के तमस में अपना एक दीप जलाओ |
सुप्त हो गयी यहाँ इंसानियत उसे तुम जगाओ ,
भ्रष्टाचार के तमस में अपना एक दीप जलाओ |
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