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लघु कथा – ‘बंजर भूमि’ (contest)

sahity kriti
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नेहा और विवेक कक्षा नर्सरी से बारहवीं तक सहपाठी थे व एक दूसरे के काफी नज़दीक थे | नेहा माध्यम परिवार में पली बढ़ी सुसंस्कारी लडकी थी | उसने अंग्रेजी मेंएम. ए.की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की उसके पश्चात बी. एड . की ट्रेनिंग करके कॉलेज में लेक्चरार के पद पर नियुक्त हो गयी| विवेक ने बारहवीं के बाद चार साल तक मिकैनिकल इंजीनियरिंग की पढाई पूर्ण करके एक बड़ी कंपनी में नौकरी करने लगा | कुछ महीने पश्चात विवेक ऑफिस केकाम से पन्द्रह दिनों के लिए कनाडा चला गया इस बीच दोनों में ही बातचीत का सिलसिला ज़ारी था और दोनों कब एक दूसरे के प्यार में बंध गए पता ही नहीं चला|
नेहा के माता-पिता अपनी बेटी के लिए सुयोग्य वर ढूंढकर उसके हाथ पीले करना चाह रहे थे इसलिए जब नेहा से इस विषय में बात की तो उसने अपनी माँ को विवेक के बारे में सब कुछ बता दिया |उन्हें विवेक और उसके माता-पिता के विचारों को जानने की जिज्ञासा थी अतः माता-पिता से फोन पर उनसे मिलने का समय ले लिया और निश्चित समयानुसार नेहा और उसके माता-पिता विवेक के घर पहुँच गए विवेक के माता-पिता ने उन तीनों का स्वागत सत्कार किया और काफी देर तक वार्तालाप हुआ | वार्तालाप के दौरान नेहा ने जाना कि वे दहेज के लोभी हैं और उसके माता-पिता इतना दहेज नहीं  दे सकते हैं |निराशा के साथ बिना देर किये हुए तीनों उठ कर अपने घर लौट आए | जब विवेक कनाडा से वापस आगया तो नेहा ने उसी से बात करना उचित समझा और जब नेहा ने विवेक से फोन पर कहा ,’’विवेक शादी के बारे में तुम्हारा क्या विचार है अब हम दोनों को शादी कर लेना चाहिए| “ `तुम्हारे पिताजी इस शादी में कितना पैसा खर्च करेंगे ?” सुनते ही नेहा दंग रह गयी क्रोध मिश्रित आश्चर्य हुआ क्योंकि उसे विवेक से यह आशा कदापि नहीं थी कि वह पैसों की बात करेगा | नेहा ने जवाब दिया “तुम्हारे परिवार में पैसे की कोई कमी नहीं है तुम भी इतनी अच्छी नौकरी करते हो फिर भी दहेज के लोभी हो….. ऐसा लगता है तुम बंजर भूमि हो….जहाँ कुछ नहीं उग सकता तुम सदैव ही बंजर रहोगे मैं तुम्हारे साथ कभी शादी नहीं कर सकती | “कह कर एक ही झटके में फोन रख दिया उधर विवेक नेहा से आशातीत उत्तर सुनकर अपने बारे में यह सोचने को विवश हो गया कि क्या वह सही में बंजर भूमि है !!

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