sahity kriti
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प्रेम ऋतु ने भीनी-भीनी
सौंधी गंध का अहसास दिलाया
कि निकल पड़ो लेकर प्रण यही…
हर आशियाने को
प्यार की रोशनी से रोशन करें !
गर किसी का दामन भरा हो अश्रु से,
रीता कर उसे भर दें प्यार के दरिये से |
गिरते हुए को दें अवलंबन भुजाओं का ,
कंटक विदीर्ण उर पर बिछौना हो प्यार का |
प्रेम शैवलिनी में उफनते सपने,
बंधते जाएँ स्नेह बंधन में अपने |
झिलमिलाये रोशनी सभी में इंसानियत की,
न टूटे कोई दर्पण या विकृत हो आकृति भी |
ख़ाक न हो ये गुलिस्ताँ किंचित दुश्मनी से,
राह पर बढ़ चलें बंधे चलें प्यार की डोर से |
कहीं छूट न जाये यह डोर हाथ से……..
बढ़े चलें… बंधे चले प्यार की डोर से |
प्रेम शैवलिनी में उफनते सपने,
बंधते जाएँ स्नेह बंधन में अपने !!!!
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