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ये रिश्ते (कांटेस्ट)

sahity kriti
sahity kriti
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कैसे हैं रिश्ते बंधन जग के
न समझते इनको वे अपने
अपने ही रक्त से बेलि बढ़ाई
होकर समर्थ बने सारे बेगाने|
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रिश्ते ने ही जग के बंधन काटे
काट दिए उसने सारे नाते
साँय-साँय करता पवन
आंधी-अंधड़ भी आये आँगन |
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प्रश्न गहराया अंतर-घट में…..
क्यों लिप्त हुए बंधन में ?
क्या रिश्ते- नाते लगते झूठे ?
नेह की सांकल तो खोल तनिक !
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जग में लगते ‘सभी ‘ अनूठे
पीड़ा का मरहम बन जाते
और दे जाते एक सुकून
कर जाते राहों को भी आसान !
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आत्मिक संबल होगा तुम्हारा ,
बहती इनमें मधु प्रेम की धारा |
सरसराती स्नेह की शीतल बयार,
होते हैं रिश्ते नाते इतने खुशगवार !
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